भारत के लिए भी स्थिति बहुत नाजुक है। हाल के कुछ वर्षों में यह उसकी कूटनीति की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है। उसने पिछले कुछ सालों में अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को सुधारने में बहुत ज्यादा ऊर्जा खपाई है। इसमें कोई दो राय भी नहीं है कि संबंधों में सुधार भी हुआ है। जिस गर्मजोशी के साथ आज अमेरिका में भारत के प्रधानमंत्री का स्वागत होता है, पहले शायद ही कभी हुआ है। वहीं, रूस भारत का सदाबहार दोस्त रहा है। वह कठिन से कठिन समय में भारत के साथ रहा है। चुनौती यह है कि भारत किसी एक खेमे में नहीं जाता है तो उसके अलग-थलग पड़ने का खतरा बढ़ जाएगा।
चीन के लिए इतना भी आसान नहीं फैसला
हाल के दिनों में अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर खुलकर सामने आई है। ड्रैगन अब दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश को टक्कर देने की राह पर है। हालांकि, रूस के साथ अमेरिका विरोधी धड़े के साथ चले जाना उसके लिए इतना आसान नहीं है। कारण है कि चीन एक्सपोर्ट बेस्ड इकॉनमी है। पूरी दुनिया में सप्लाई के लिए उसके कारखाने चलते हैं। ऐसे में उसके साथ जोखिम बहुत ज्यादा हैं। यूक्रेन मामले में कूटनीतिक लिहाज से भले वह रूस के संदर्भ में थोड़ा नरम दिख रहा हो, लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ खुलकर बैर लेने के लिए वह इतनी जल्दी तैयार नहीं होगा। इसमें उसके आर्थिक हितों को बहुत बड़ा झटका लगेगा।