शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती नही रहे, राजनैतिक विवादों से घिरे रहे

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शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती नही रहे, राजनैतिक विवादों से घिरे रहे

ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ के शंकराचार्य रहे

सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे

स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती लंबे समय से बीमार थे

दिल्ली (डेक्स)। ज्योतिमठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती रविवार को ब्रम्हलीन हो गये। बताया गया कि वह काफी दिनों से अस्वस्थ रहे। सनातन धर्म की रक्षा के लिए आजीवन प्रयासरत रहे। उन्‍होंने नरसिंहपुर जिले की झोतेश्‍वर पीठ के परमहंसी गंगा आश्रम में अंतिम सांस ली। उनके निधन से संत समाज में शोक है। इनका राजनैतिक मुद्दों को लेकर सदैव विवाद बना रहा।


स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती 99 वर्ष के रहे। इन्होंने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका बेंगलुरु में इलाज चल रहा था। कुछ ही दिन पहले ज्योर्तिमठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में लौटे। उन्‍होंने इसी आश्रम में दोपहर साढ़े 3 बजे अंतिम सांस ली। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने आजादी की लड़ाई में हिस्‍सा लिया था और जेल भी गए थे।
शंकराचार्य स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती का जन्‍म 2 सितंबर 1924 को हुआ था। स्‍वामी जी ने महज नौ साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया। 1980 में उन्‍हें शंकराचार्य की उपाधि मिली थी। वह धर्म के साथ राजनीतिक मुद्दों पर भी अपनी बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते थे। पूर्व मुख्‍यमंत्री दिग्विजय सिंह समेत अनेक वरिष्‍ठ नेता उनके अनुयायी रहे हैं। वह ज्‍योति‍र्मठ और द्वारका पीठ के शंकराचार्य थे।
शंकराचार्य के शिष्य ब्रह्म विद्यानंद की ओर से साझा की गई जानकारी के मुताबिक स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को सोमवार को शाम 5 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि दी जाएगी। महज 19 साल की उम्र में स्‍वतंत्रता सेनानी के तौर पर उनकी ख्‍याति देशभर में फैल चुकी थी और वह क्रांतिकारी साधु के रूप में चर्चित हो गए थे। सन 1942 का दौर था जब देश अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई लड़ रहा था।सिवनी जिले के दिघोरी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्‍मे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के बचपन का नाम पोथीराम उपाध्याय था। शंकराचार्य स्वामी स्परूपानंद सरस्वती ने राम जन्मभूमि विवाद मामले में एक तल्‍ख बयान में भाजपा और विश्‍व हिंदू परिषद पर निशाना साधा था। उनका कहना था कि कुछ संगठन अयोध्या में मंदिर के नाम पर अपना कार्यालय बनाना चाहते हैं जो हमें कतई मंजूर नहीं है। उन्‍होंने इस मुद्दे पर हो रही राजनीति की आलोचना की थी। साल 1950 में उन्‍हें दंडी संन्यासी और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली।

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