भारत-अमेरिका संबंधों को कैसे प्रभावित रहा है रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध

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भारत और अमेरिका के बीच हाल के दशकों में बढ़ती नज़दीकियों के बावजूद रूस-यूक्रेन संकट ने दोनों देशों के बीच कुछ मूलभूत मतभेदों को ज़ाहिर किया है.

अमेरिका के सहयोगी यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कार्रवाई के विरुद्ध, दबाव डालने के लिए साथ आ गए हैं. अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के साथ-साथ जापान और दक्षिण कोरिया जैसी एशियाई शक्तियां भी रूस के विरुद्ध प्रतिबंध लगा रही हैं.

हालांकि, भारत उन कुछ देशों में से एक है, जिन्होंने यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस की आक्रामकता की निंदा करने से ख़ुद को दूर रखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फ़रवरी को पुतिन के साथ फ़ोन कॉल में सिर्फ़ ‘हिंसा को तत्काल ख़त्म करने की अपील की.’

उधर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के यूक्रेन पर हमले के ख़िलाफ़ पेश किए गए प्रस्ताव पर भी भारत ने वोट नहीं किया.

हालिया वर्षों में भारत ने अमेरिका को बड़े पैमाने पर नज़रअंदाज़ किया है, लेकिन बावजूद इसके अमेरिका ने न सिर्फ़ भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाया बल्कि ‘क्वाड’ (एक समूह जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं) जैसे मंचों के माध्यम से बहुपक्षीय जुड़ाव को भी मज़बूत किया है.

मुखर चीन के बारे में साझा चिंताओं ने इंडो-पैसिफ़िक में भारत और अमेरिका को एक-दूसरे के बेहद क़रीब ला दिया है. लेकिन रिश्तों की ये मधुरता दूसरे भौगोलिक क्षेत्रों में नहीं आ सकती है. जैसा कि रूस-यूक्रेन संकट में भारत और अमेरिका की अलग-अलग स्थिति से ज़ाहिर है.

भारत सरकार का सीमित सार्वजनिक संचार और मौजूदा संकट के लिए पुतिन की निंदा करने से इनकार करना, पूरी तरह से असामान्य नहीं है, ख़ास तौर पर देश की विदेश नीति के रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत की पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ ऐसा करना.

नई दिल्ली ने पक्ष ना लेने के बारे में अपने रुख़ को दृढ़ता से रखा है. हालांकि कुछ विशेषज्ञों और मीडिया ने टिप्पणी की है कि भारत सरकार के लिए परिस्थितियां इतनी आसान नहीं हो सकती हैं.

क्या भारत-अमेरिका के रिश्ते रूस की परीक्षा में कामयाब होंगे ?

रूस-यूक्रेन संघर्ष भले ही भारत-अमेरिका के संबंधों की सीमाओं को उजागर कर दिया हो, लेकिन लंबे अरसे तक इसके प्रभाव पर राय जुदा हैं.

कुछ भारतीय मीडिया ने इस बात पर रोशनी डाली है कि रूस के ख़िलाफ़ अमेरिका की पाबंदियां भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालेंगी, जो रूस से अपने हथियारों का क़रीब 60 फ़ीसद आयात करता है.

अमेरिका, भारत पर रूस से हथियार न ख़रीदने का दबाव बढ़ा सकता है. इसका असर भारत और रूस के बीच S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली सौदे पर भी दिखाई देगा.

रूस के ख़िलाफ़ अमेरिकी प्रतिबंध भारत और रूस के ज़रिए संयुक्त रूप से विकसित ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल के नियोजित निर्यात समेत कुछ और महत्वपूर्ण रक्षा सौदों को प्रभावित कर सकते हैं; एक साथ 4 युद्धपोत बनाने का समझौता; भारत द्वारा Su-MKI और MiG-29 विमानों की ख़रीद; और बांग्लादेश के रूपपुर में परमाणु ऊर्जा संयंत्र के निर्माण के लिए भारत-रूस की संयुक्त परियोजना भी प्रभावित हो सकती है.

मशहूर हिंदी दैनिक नवभारत टाइम्स ने 24 फ़रवरी को अपने संपादकीय में कहा कि भारत के लिए रूस-यूक्रेन संघर्ष का प्रभाव विशेष रूप से हथियारों की ख़रीद में नज़र आएगा।

इसी तरह, अंग्रेज़ी के सबसे ज़्यादा प्रसारित दैनिक ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में एक संपादकीय ने आगाह किया है कि अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम के साथ संबंध “पहले से कहीं ज़्यादा अहम हैं” और इसे बनाए रखने के लिए “अपने वर्तमान राजनयिक रुख़ के पुनर्मूल्यांकन की ज़रूरत होगी, जो कि एक मुख्य सवाल है.”

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